Christmas day : भारत में अनेकों धर्म और जाति के लोग रहते है सभी लोग अपने धर्म के त्यौंहार मानते है उसमें से क्रिसमस ईसाई धर्म का त्यौहार है, लेकिन सभी धर्म और संस्कृति के लोग इस पर्व को बेहद उत्साह के साथ मनाते हैं।
Christmas day के बारे मे यह जानना जरूरी हो जाता है कि आखिर 25 दिसंबर को ही क्रिसमस क्यों मनाया जाता है? आइए जानते हैं
25 दिसंबर को Christmas day मानने का इतिहास मसीह के जन्म से संबंधित है। ईसाई धर्म के अनुसार, 25 दिसंबर को प्रभु यीशु मसीह का जन्म हुआ था, इसलिए इस दिन को Christmas day के रूप में मनाया जाता है. यह पर्व पहली बार 336 में ईसाई रोमन सम्राट कॉन्सटेंटाइन के शासनकाल में मनाया जाने लगा।
वैसे तो क्रिसमस ईसाई लोगों का त्यौहार है लेकिन अब हर जाति और हर संस्कृति और हर धर्म के लोग क्रिसमस को मानते हैं
Christmas day के दिन क्या किया जाता है
क्रिसमस ईसाई लोगों का सबसे महत्वपूर्ण त्यौहार है जिसे हर वर्ष 25 दिसंबर को बड़े धूमधाम से मनाया जाता है इस दिन गिरजाघर में क्रिसमस की घंटियों की मधुर ध्वनि गूंजती है इसके साथ-साथ गिरजाघरों में रंग बिरंगी रोशनी और सजावटी वस्तुओं से उसको सजाया जाता है इस अवसर पर ईसाई लोग अपने घरों में केक काटते हैं क्रिसमस ट्री लगते हैं लाइटिंग करते हैं विभिन्न प्रकार के पकवान बनते हैं एक दूसरे को मिठाई खिलाते हैं हमारे मन में यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है कि आखिरकार 25 दिसंबर को ही क्रिसमस डे क्यों मनाया जाता है लिए अतीत के पन्नों से जानते हैं Christmas day को 25 दिसंबर में मनाने का राज
Christmas day मानने का इतिहास
प्रभु ईसा की तिथि को लेकर कई मतभेद हैं हालांकि ईसाई धर्म की कुछ मान्यता के अनुसार ईसा मसीह का जन्म 25 दिसंबर को हुआ था क्रिसमस शब्द की उत्पत्ति क्राइस्ट मास से हुई है इसे पहली बार ईसाई रोमन सम्राट और रोमन सम्राट कांसटेटाइन के शासनकाल के दौरान 336 ईस्वी में मनाया गया था। इसके बाद पोप जूलियस ने 25 दिसंबर को आधिकारिक तौर पर जीसस क्राइस्ट का जन्मदिन मनाने का फैसला लिया था तब से हर साल 25 दिसंबर को हम प्रभु यीशु मसीह के जन्मदिन के रूप में मनाते हैं
Christmas day मनाने के पीछे छिपी हुई है ऐतिहासिक कहानी
ईसाई धर्म में 25 दिसंबर को प्रभु यीशु मसीह के जन्म के रूप में मनाते हैं कहा जाता है कि मरियम को एक सपना आया था जिससे उनके प्रभु के पुत्र यीशु को जन्म देने की भविष्यवाणी हुई थी एक बार मरियम और यूसुफ को बेथलहम जाना पड़ा लेकिन देर रात होने की वजह से मरियम को बेथलहम में ही रुकना पड़ा पर वहां रुकने के लिए कोई जगह न होने पर मरियम ने गौशाला में रुकने का फैसला किया जहां मरियम ने प्रभु यीशु को जन्म दिया
उस दिन 25 दिसंबर था। इसलिए इस खास दिन पर ईसाई लोग इकट्ठा होकर प्रभु यीशु की अराधना करते हैं और साथ में क्रिसमस कैरेल गाते हैं उनके जन्मदिन की खुशी मानते है और चर्च जा के यीशु मसीह से प्रार्थना करते है
Christmas day पर सांता क्लोज का क्या सम्बन्ध है क्या सांता क्लोज आते है और क्या सभी को गिफ्ट देते है और इतना सच है ये बात यह वहम है
वैसे तो क्रिसमस को यीशु मसीह के जन्मदिन के नाम से जाना जाता है लेकिन फिर भी उसे दिन को सांता क्लोज के नाम से जोड़ा जाता है ऐसी क्यों आइए जानते है वास्तव में सेंटा का नाम संत निकोलस है,यह कहानी 260 इस्वी में तुर्की से शुरू हुई होती है सांता अपने वाइफ के साथ उतरी धुव्र पर रहते है वे एक खुशमिजाज व्यक्ति थे हमेशा हंसते मुस्कुराते रहते थे उनका दिल करुणा और प्रेम की मूर्ति था उनकी सफेद दाढ़ी थी वह किसी के दुख को देख नहीं सकते थे और सभी को खुश करने की कोशिश में लगे रहते थे, तथा रात में वह दिन दुखों की सेवा करने के लिए इधर-उधर घूमा करते थे कोई भी बेसहारा और तकलीफ में होता था तो उसकी वह मदद करते थे जिससे उनको खुशी मिल सके उन्हें क्रिसमस की पूर्व संध्या पर बच्चों को उपहार देने के लिए जाना जाता है, अक्सर वे चिमनी से नीचे आते हैं और फायरप्लेस द्वारा लटकाए गए मोज़ों में उपहार छोड़ जाते हैं । सांता को खुशी, उदारता और दयालुता से जोड़ा जाता है;
इतिहासकारों का मत है कि यीशु मसीह और सांता क्लास में कोई आपसी संबंध नहीं है संत निकोलस प्रभु यीशु की भक्ति में लीन रहते थे। वह बच्चों को भी बहुत प्यार करते थे। वह बच्चों को गिफ्ट देना बेहद पसंद करते थे। वह रात के अंधेरे में बच्चों को तोहफा देते थे ताकि बच्चे खुश रहे
Christmas day में क्रिसमस ट्री का क्या महत्व है
क्रिसमस ट्री को लेकर कई कहानियां प्रचलित हैं, कहा जाता है कि क्रिसमस ट्री को सजाने की शुरुआत 16वीं सदी में ईसाई धर्म के सुधारक मार्टिन लूथर ने की थी। एक बार उन्होंने बर्फीले जंगल से गुजरते समय सदाबहार फर (सनोबर) के पेड़ को देखा। पेड़ की डालियां चांद की रोशनी में चमक रही थीं, जिससे वह काफी प्रभावित हुए और अपने घर पर भी इस पेड़ को लगा लिया।जब ये पेड़ थोड़ा बड़ा हुआ तो 25 दिसंबर की रात को उन्होंने इस पेड़ को छोटे-छोटे कैंडिल और गुब्बारों की मदद से सजाया। ये पेड़ काफी खूबसूरत लग रहा था, जिसको देखकर कई लोग इसे अपने घर में लगाकर सजाने लग गए। इसके बाद देखते ही देखते 25 दिसबंर के दिन हर साल इस पेड़ को सजाने का चलन शुरू हो गया।
आज के समय में क्रिसमस ट्री को सजाना क्रिसमस उत्सव का सबसे खास हिस्सा बन चुका है। इस परंपरा में लोग अपने घरों और चर्चों में पेड़ों को रंगीन रोशनी, गेंदों, घंटियों, रिबन, और सितारों से सजाते हैं। खासकर ट्री के टॉप पर लगाए जाने वाले स्टार को बेथलहम के तारे का प्रतीक माना जाता है, जिसने तीन ज्ञानी पुरुषों (Three Wise Men) को यीशु मसीह के जन्मस्थान तक मार्गदर्शन किया था।
आज Christmas day का त्यौहार भारत के हर कोने मे रहने वाला हर व्यक्ति मानता है आज क्रिसमस डे ईसाई त्योहार ना होकर हर जाति धर्म और संस्कृति के लोगों का त्यौहार है